योगी तेरी महिमा न्यारी —बिमारी, बेरोजगारी, और बदहाली

Shashank Shukla
3 min readJun 12, 2021

उत्तर प्रदेश की जनता; देश और प्रदेश की सरकार को प्रदेश की बदहाली के लिए जिम्मेदार मानती है | यह सच हाल ही में हुए प्रश्नम सर्वे में उजागर हुआ जिसमे उत्तर प्रदेश के ६६% उत्तरदाताओं ने देश और प्रदेश की भाजपा सरकार को कोविड महामारी के दौरान हुई बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराया। सारे बड़े प्रदेशों के मुकाबले, सरकार से रोष का आंकड़ा उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा है | यह सर्वे साफ दर्शाता है की उत्तर प्रदेश की जनता योगी सरकार के झूठे आकड़ों पर कतई भरोसा नहीं कर रही है और २०२२ में योगी से प्रदेश व्यापक बदहाली का हिसाब लेने के लिए तत्पर है।

बिमारी

जब कोविड महामारी का प्रकोप अपनी चरम सीमा पर था तब योगी सरकार नदारत थी। योगी खुद तथा उनके सभी सांसद और विधायक जिनकी संख्या ४०० से अधिक है, कहीं भी नजर नहीं आ रहे थे | अब जब कोरोना का ग्राफ प्राकृतिक तौर पर नीचे आ रहा है तब योगी जी श्रेय लेने के लिए अचानक सक्रिय हो गए हैं, इधर उधर जाकर फोटो खिचा रहे हैं और मीडिया में लम्बे लम्बे लेख और बड़े बड़े इश्तिहार दे रहे हैं की कैसे उन्होंने और उनकी सरकार ने कोविड काल में बेहतरीन कार्य किया है। मगर वह जनता जिनके प्रियजन इस महामारी से पीड़ित हुए और हजारों की सख्या में मृत हुए, उनके लिए यह इश्तिहार किसी गंदे मजाक से कम नहीं है। योगी का झूठ जनता को ही नहीं, उनके खुद के विधायकों तथा सांसदों को हजम नहीं हो रहा है, जिसके चलते उत्तर प्रदेश भाजपा में बगावत के स्वर सुनाई पड़ने लगें हैं | इसी कारण योगी अपनी कुर्सी की दुहाई देने के लिए दिल्ली में दर दर भटक रहें हैं। यह एक सफल और योग्य मुख्यमंत्री के लक्षण तो नहीं दिखते !

बेरोजगारी

कोविड महामारी के चलते, उत्तर प्रदेश के लाखों नागरिकों को वापिस अपने गांव लौटना पड़ा है जो की प्रदेश के बहार औद्योगिक प्रदेशों में कार्य कर रहे थे। योगी सरकार ने पिछले सालों में कई औद्योगिक परियोजनाओं की घोषणा की, डिफेंस कॉरिडोर बनाने का वादा किया और इन्वेस्टर समिट में ६०,००० करोड़ के इन्वेस्टमेंट और २ लाख नौकरियों की उम्मीद जगाई, मगर ४ साल बीतने के बाद भी न परियोजना है न इन्वेस्टमेंट न ही नौकरियां | उत्तर प्रदेश का युवा और मजदूर दोनों मनरेगा के सहारे गुजारा कर रहा है या फिर न चाहते हुए भी, रोजगार की तलाश में अपने प्रदेश से पलायन करने पर मजबूर है।

महंगाई से बदहाली

कोरोना महामारी से वैसे ही परेशान जनता के लिए महंगाई नई मुसीबत बनकर आई है. रोजमर्रा के इस्तेमाल होने वाले ग्रॉसरी आइटम यानी किराने के सामान के दाम में एक साल में जहां 40 फीसदी की बढ़त हुई है, वहीं खाद्य तेलों के दाम 50 फीसदी बढे हैं। रोजमर्रा की जरूरत के सभी फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) की बात करें तो पिछले एक साल में इनके दाम में करीब 20 फीसदी की बढ़त हुई है।

इस महंगाई की मार सबसे ज्यादा न्यूनतम आय वर्ग पर पड़ा है | महंगाई के आलम ये है की माध्यम वर्ग भी विचलित हो उठा है और त्राहि त्राहि कर रहा है | सरकार जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने में असमर्थ साबित हुई है जिससे जनता में काफी रोष है।

सपा ही विकल्प

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवम पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में लगातार सपा को भाजपा का विकल्प बनने की कोशिशें करते रहे हैं जिसमे उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिल चुकी है । कांग्रेस और बसपा इस मामले में सपा से निर्णायक तौर पर पिछड़ गयी हैं। हाल में हुए उप-चुनाव तथा विधान परिषद् के चुनाव के नतीजों से पहले ही यह आंकलन मिल रहा था परन्तु पंचायत चुनाव के नतीजों से यह मामला और साफ हो गया है। उत्तर प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी ने भाजपा से बाजी मार ली है। नतीजों में भाजपा दूसरे नंबर पर है और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।किसान आंदोलन का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में व्यापक तौर पर नजर आया है जिसका फायदा २०२२ में विपक्ष को मिल सकता है। पंचायत चुनाव के नतीजों से साफ संकेत मिल रहे हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला योगी आदित्यनाथ बनाम अखिलेश यादव का हो सकता है।

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Shashank Shukla

Shashank is a social entrepreneur, columnist & a grassroots socio-political activist. He is an MPA from Harvard, PhD Econ from IIM Lucknow & an Acumen fellow